देश । कुछ गैर-भाजपा शासित राज्य लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर विभिन्न वर्गों और राजनीतिक दलों की राय लेने का प्रयास किया। नि:संदेह संकट की इस घड़ी में ऐसा जरूरी भी था। बहरहाल, सरकार उन सभी पहलुओं को लेकर मंथन कर रही है, जिससे आम जनजीवन के साथ अर्थतंत्र में स्पंदन कायम रहे। यही वजह है कि जहां पिछली बार प्रधानमंत्री का नारा था कि ‘जान है तो जहान है’ तो इस बार ‘जान के साथ-साथ जहान’ की बात की गई है। जाहिर है कि सीमित मात्रा में आर्थिक गतिविधियां चालू करने की बात है। पहला संकट तो सप्लाई चेन न टूटने देने की जिम्मेदारी है। दूसरी रबी की फसल के तैयार होने पर फसलों की कटाई और गेहूं की खरीद की चिंता है। तीसरे खाली बैठे श्रमिकों को काम देने की बात है ताकि उनके चूल्हे जलते रहें। दरअसल, केंद्र सरकार कुछ राज्यों के साथ ऐसे ग्रीन जोन चिन्हित करने का प्रयास कर रही है, जहां औद्योगिक गतिविधियों को शुरू किया जा सके।
बदले हालात में पूरी तरह लॉकडाउन को बढ़ाना व्यावहारिक कदम नहीं कहा जा सकता। सरकार के सामने आवश्यक वस्तुओं के स्टॉक को बनाये रखने की भी चिंता है, जिसके अंतर्गत सीमित दायरे में उद्योग गतिविधियां शुरू करने, फैक्टरियां और वेयरहाउसिंग गतिविधियां आरंभ करने की आवश्यकता है। नि:संदेह इन गतिविधियों को चालू करने के लिए जरूरत के मुताबिक कामगारों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की अावश्यकता होगी। वहीं दूसरी ओर उद्योग जगत भी सीमित दायरे में औद्योगिक गतिविधियां आरंभ करना चाहता है। यह इसलिये भी जरूरी है कि कारखाने बंद होने से पर्याप्त मात्रा में चिकित्सा सामग्री उपलब्ध नहीं हो पा रही है। ऐसे में सीमित औद्योगिक गतिविधियों से हम चिकित्सा उपकरण व खाद्य सामग्री का उत्पादन जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं। लेकिन यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सख्ती से हो, अन्यथा लॉकडाउन का मकसद खत्म हो जायेगा। यह ध्यान में रखते हुए कि देश में कोरोना संक्रमितों के मामले बढ़ रहे हैं और मौत का आंकड़ा भी। यह लड़ाई लंबी चलेगी। लॉकडाउन के प्रथम चरण के सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं और हम किसी हद तक कोरोना की वैसी त्रासदी टालने में कामयाब हुए हैं जैसे अमेरिका, इटली, स्पेन व अन्य यूरोपीय देश झेल रहे हैं।
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