पारंपरिक लोहार समाज पर आर्थिक संकट
गोंदिया । पारंपरिक रूप से लोहे के औजार उपयोगी वस्तु बनाकर जीविका यापन करने वाले लोहार समाज के हाथ से काम लगभग खत्म होने के कगार पर आ गया है। पहले ही मशीनों द्वारा बनाया गया ज्यादातर स्टील और प्लास्टिक के सामान लोहार के पास जाने की उपयोगिता खत्म कर दी है, जिससे लोहार के हाथ रुक गए हैं। इन दिनों समाज का हर वर्ग कोरोना के घर में बैठा हुआ है। जिसमें परिवार के साथ बच्चे भी घर पर ही हैं बच्चों को भी बाहर जाने से मनाई है। जिससे वह बाहर जाकर खेल नहीं सकते कुछ वर्ष पूर्व शहर के बच्चे बच्चे भंवरा, गिल्ली,खंती अधिक खेल खेला करते थे। जिसमें प्रमुख रुप से भंवरा घुमाना बच्चों का पसंदीदा खेल हुआ करता था लेकिन, बदलते समय के साथ यहां खेल गुमनामी में जा रहा है। इस खेल के लिए बच्चे अपने भंवरा की आरू तेज करने के लिए रामनगर स्थित लोहार की दुकान में जाते थे, जिससे वहां पर बच्चों की काफी भीड़ हुआ करती थी वही उनकी आय में भी अच्छी खासी वृद्धि हो जाती थी। वह अन्य औजार पजाने के लिए लोग लोहार के पास जाते थे लेकिन, कोरोना ने इसकी आए पर संकट डाल दी है। बच्चे घरों में कैद होने के कारण भंवरा के साथ-साथ अन्य खेल भी नहीं खेल पा रहे हैं। लोहार समाज का धंधा धब्बे पड़ा हुआ है। उन्हें आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है परिवार पालने में भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस समाज के लोग शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं।
No comments: