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हथनी की दर्द भरी दास्तान


हां मैं  हथिनी  हूं
गर्भ मैं एक नन्हा सा शिशु लिए
भूख से व्याकुल  इधर उधर भटक रही थी  तूने ही तो बुलाया मुझे
और मुझे फल खाने को दिया
मैं बहुत खुश हो गई
मेरे दिल से ढेरों दुआएं निकली तुम्हारे लिए मैं भूखी थी मेरा बच्चा भी भीतर भूखा था मैंने तुम्हारा दिया हुआ फल खा लिया
हे भगवान उसमें तो पटाखे थे
मेरे मुंह में  फूटने लगे
मेरा मुंह घायल हो गया
मैं ना कुछ खा पा रही थी
ना कुछ पी पा रही थी 
दर्द से मैं व्याकुल इधर उधर भटक रही थी
भूख भी जोरों की थी
मुझे चक्कर आने लगे थे
मैं तो विश्वास करके चली आई थी तुम्हारे पास
मैंने क्या बिगड़ा था तुम्हारा
मैं तो तुम्हारे पास नहीं आई थी
तुमने खुद ही बुलाया था मुझे
इतनी तड़प तड़प के मरी हूं मैं
मेरी उस छटपटाहट को
गर्भस्थ मां को तुमने बहुत तड़पाया
मैं तो मुक्त हो गई इस शरीर से
मेरा बच्चा भी मुक्त हो गया
हम तो ईश्वर के चरणों में जगह पा गए लेकिन जो तड़प  और वेदना 
मुझे तुमने दी है
उसका हिसाब तो तुम्हें देना होगा
दो बेजुबान ओ की जान तुमने ली है
ब्याज सहित तुम्हें
चार जानो की कीमत तो चुकानी पड़ेगी
मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी
मैं तुम्हें बद्दुआ देती हूं
तुमने मेरे विश्वास को तोड़ा है
तुम्हारी वजह से मैं
सारी मानव जाति  को
शंका की नजर से  देखने लगी हूं
हे मानव तू कभी नहीं सुधरेगा
तू आजतक जानवरों से
सिर्फ लेता आया है
तू इतना गिर चुका है 
हम बेजुबान ओं की जाने भी लेने लगा है  प्रलय आ चुकी है
और  तू नादान समझ नहीं पा रहा है 
सुन ए मानव मैं श्राप देती हूं
जो जो मानव प्राणियों का अहित करेगा उन्हें कष्ट देगा  वह कभी सुखी नहीं रहेगा सब कुछ होते हुए भी वह बेचैन रहेगा
ना वह जी पाएगा ना वह मर पाएगा
(केरल की हथिनी की भावनाओं को अपने शब्दों में ढाला है) श्रद्धा सुमन प्यारी हथिनी मैं शर्मिंदा हूं कि मैं एक मानव हूं ।

अरुण बन्नाटे, गोंदिया

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